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Saturday, November 14, 2015

चल बच्चे बन जाते हैं

चल बच्चे बन जाते हैं
बचपन में लौट जाते हैं,
सहज और सरल हो जाते हैं
भरी दुपहरी में खेल के आते हैं, चल बच्चे बन जाते हैं

तुम अमियाँ तोड़ के लाना
मैं नमक मिर्ची लाऊँगी
बरसाती में बैठ के चटखारे ले के खाते हैं, चल बच्चे बन जाते हैं

मिट्टी पे नाम लिखते हैं
स्लेट पे शक्लें बनाते हैं
और दिल के किसी कोने में ढाँप के रख जातें हैं, चल बच्चे बन जाते हैं

बहोत दिनों से तुम घर पे नहीं आए
चल घर घर खेलते हैं
एक दूसरे के घर हो आते हैं, चल बच्चे बन जाते हैं

शायद किसी का मकां बन रहा है,
रेत का ढ़ेर आया है
चल न, रेत में हम भी घर बनाते हैं, चल बच्चे बन जाते हैं 

शरारत करने का मन है
मंदिर के पास वाले पीपल के पेड़ से
किसी की मन्नतों के धागे खोल आते हैं, चल बच्चे बन जाते हैं

चकाचौंध बहोत है सपनों के शहर में
तेज़ रौशनी में दोस्त भी नहीं दिखते
चल अपने छोटे से शहर हो आते हैं, चल बच्चे बन जाते हैं

चल अबकी बार होली में
कच्ची उम्र के पक्के रिश्ते
रंगों से भर आते हैं, चल बच्चे बन जाते हैं