Welcome to my poetry blog !!

Welcome to my wor'l'd of English, Hindi and Punjabi poetry. All my works are registered and copyright protected. No part should not be reproduced in any manner whatsoever and in any part of the world without the written consent.

Friday, July 25, 2014

कैसी यह दुनिया बनाई विधाता?

या मर्द बनाता या औरत बनाता
या उनको बनाता या हमको बनाता 
कुछ इस तरह से दुनिया सजाता

यह लाँछन लगाते हैं दर्द पिरोते हैं
खंजर चुभोते हैं ऐसे मर्द होते हैं
कैसे ये समझें न रिश्ता न नाता 
कैसी यह दुनिया बनाई विधाता?

क्यों औरत बनाई डरी सकुचाई
निर्भय हुई भी तो मर्द की परछाई 
क्यों उसका दामन खींचता है कोई 
क्यों वह रातों को डर डर न सोई 
क्यों उसे ही सब झेलना है 
सहना समाज़ की अवहेलना है 
क्यों उसे चुप्पी का पाठ पढ़ाया 
सब दर्द लेकर भी सहना सिखाया 
उसी को बाप भाई का रिश्ता बताया 
क्यों उसी को त्याग की मूर्ति बनाया 
सिर्फ औरत बनाता मर्द नहीं 
सिर्फ़ खुशियाँ सजाता दर्द नहीं 
जो खुशियां लुटाती सिर्फ माँ बनाता 
ममता की प्रतिमाओं से दुनिया सजाता 
कैसी यह दुनिया बनाई विधाता ?

क्यों ऐसे आदमी बना दिए बाप 
जो अपनी ही बेटियों से करने लगे पाप 
वात्सल्य और वासना में फ़र्क़ नज़र नहीं आता 
कैसी यह दुनिया बनाई विधाता?

नन्ही नन्ही परियाँ जो उड़ना नहीं जानती
जिनकी भोली आँखे कपटता नहीं पहचानती 
क्यों तू उनका सरंक्षक बन नहीं पाता ?
कैसी यह दुनिया बनाई विधाता?

क्यों ऐसी दुनिया बनाई विधाता?
या उनको बनाता या हमको बनाता 
कुछ इस तरह से दुनिया सजाता।

 Copyright Mridual aka writingdoll

Yes, I am a feminist if that is what my strong views about atrocities on women and girls make me. My heart goes out every time I see an addition to my #BrokenDollHouse.  I am angry with my God for creating a world such as this. How could HE create such barbaric, callous creatures to be called as human beings? This is my dialogue with HIM on this Ekadashi, 22nd July with tearful eyes.

Recited it at #FWA Kavi Goshthi on 20th Feb 2015

Read poignant poetry.  Every poem is based on a real incident or narrative by real people.

Thursday, July 17, 2014

To My Love

To My Love

Its been ages
since I left your home
to wander and to explore
from one lifetime to another

So long
since I felt the comfort of your arms
getting suffocated
in the arms of many men
in many lifetimes
yearning for true love
that was never there

Many lives
of fleeting pleasures
and never ending pain
Many lifetimes
of disgust, guilt, penance
and shame

A very tiring 
long journey
of superficial unions
in the make believe world
like a deep slumber
with dreams
so unreal

I am awake
at last
Nothing allures me any more
I want your love
just like before...


There have been some wonderful changes in my life and I know I have found back my love. I am still a sinner and stuck in the muck but I am aware and I am calling out my Krsna to pull me out...He is smiling at me.. He wants me to try some more.. I am certain He will hold my hand and embrace me forever.  (These words came out on paper sometime last month..)

Copyright Mridual aka writingdoll

Wednesday, July 16, 2014

अब नहीं


अब नहीं

बहुत छुपाया
 बहुत छुपी 
बहुत सहमी
 बहुत डरी

पर अब नहीं।

 तकलीफ़ें
 मुश्किलें
 रुकावटें 

चुप्पी साधे 
 कई साल बीते 

पर अब नहीं।

आँसू 
 शिकायतें 
बेतुकी रिवायतें 

फ़िज़ूल निभाया 

पर अब नहीं।

यादों से कहा है 
जब जी चाहे आओ 
जाओ
 न मुझको आज़माओ 

अब फ़र्क़ पड़ता
रत्ती भर नहीं।

अब नहीं।

Copyright@Mridual aka writingdoll

Tuesday, July 15, 2014

जाम

कई वजहों से हुई खाली बोतल
कई वजहों से बने जाम 
कभी ख़ुशी के नाम 
कभी दर्द के नाम

कभी गम बाँटने की चाह में 
कभी छुपाने वाली आह में 
कभी खिलखिलाते हुए 
कभी सिसकियों के बीच 
कभी दोस्तों के नाम 
कभी दुश्मनों के नाम

कभी भुलाने के लिए
कभी रुलाने के लिए 
कभी दिखाने के लिए 
कभी सताने के लिए 
दिल मिलने के नाम 
दिल टूटने के नाम

कई वजहों से हुई खाली बोतल
कई वजहों से बने जाम 
कभी ख़ुशी के नाम 
कभी दर्द के नाम 

I am just a sparkling wine connoisseur (Champagne or better) but as a perfumer I have worked with absolute alcohols..the finest and purest and I have a nose for quality liquor. Its been fun working with Liquor factory where my leather bag imbibed enough alcohol vapours and sent wrong signals to people. This poem is more of observing many people in my life. Some pakka bewdas !!!

Copyright Mridual aka writingdoll

Its about Hormones

Its about Hormones 

Its a girls' fight
everyday, every night
All in the family
between girls. Grown up
and growing up
Big girl and not so big girls.

Weird changes in wonder years..

Mindless crush
adrenaline rush
aggression for no reason
surge in sentiment
hunger pangs
mood swings 

Lunch box untouched
pile of laundry on bed 
school bag stuffed with torn notes
secret diaries of silly posts
frequent bouts of self pity
occasional doubts about paternity.. ..

Blame it all on hormones.
Silly hormones..
those change when 
you are growing up
and when you pause growing

Hormones at fourteen
hormones after forty..

Those silly fights
are not about any thing..
Its about hormones
hers and hers and hers.


I am a full time mother and moonlighting into my other creative professions.. I like to spend a lot of my time with my daughters. Its been a roller coaster ride of all elements of fun and fear. I keep trying ways to understand them and help them because I had been a rebel, a fussy eater and very sensitive teenager myself..... all because of these silly HORMONES

Wednesday, July 2, 2014

मैंने कहा बादल से

मैंने कहा बादल से:
"अरे नाराज़ हो क्या? 
पल्स पोलियो की बूँदों की तरह 
दो दो बूँद टपका कर चल देते हो"-
कल यही शिकायत की थी मैंने।
"बरसा दो बारिश को बारिश की तरह"-
बस यही गुज़ारिश की थी मैंने।
और तुम बरस पड़े 
जोर जोर से 
घर में पानी घुस आया 
बालकॉनी की ओर से,
पर इसकी शिकायत तुमसे नहीं है।
तुम तो बरसो
जम के बरसो
झम झम बरसो

मन मयूर सा नाच उठा है 
पेड़ो के पत्ते निखर से गए हैं 
कबूतर छज्जों से सट कर दुबक गए हैं 
सड़क धुल गयी है 
लो, पहली छतरी खुल गयी है
धीरे धीरे कई रंग बिरंगी छतरियाँ 
काली बेरंग सड़क पर 
चलने फिरने लगी हैं।
वह खूबसूरत लबादों में,
जिन्हें रेन कोट कहते हैं 
ये स्कूली बच्चे
कितने प्यारे लगते हैं, 
पर रेन कोटों में इनकी पीठ पर 
ऊँट के कूबड़ की तरह 
उभरा हुआ बस्ता 
और पानी से भरे 
गड्ढ़ों वाला रस्ता,
बस यही खलता है,
पर इसकी शिकायत तुमसे नहीं है।
तुम तो बरसो
जम के बरसो
झम झम बरसो

सुनो, अब किसी रोज़ मैं 
छतरी घर पे भूल आऊँगी 
तुम्हारी ताज़ा तरीन बारिशों में 
पूरा भीग जाऊँगी,
अरे वैसे तो लोग 
बारिश को तरसते हैं 
पर बरसने लगे
तो छुपने को भगते हैं,
ना, यह भी शिक़ायत तुमसे नहीं है।
तुम तो बरसो
जम के बरसो
झम झम बरसो


और तुम्हारे धुंधले ठहरे पानी में भी
रंगीन छवियाँ बहुत भाती हैं
वैसे तो तुम्हारी काली घटाएँ
सब रूमानी कर जाती हैं 
पर तुम्हारी बारिश की चंद बूँदें
कम्बखत यादें बहुत सी ले आती हैं,
अरे इसकी भी शिकायत तुमसे नहीं है। 
तुम तो बरसो
जम के बरसो
झम झम बरसो


Yesterday I wrote a blog post guzarish-baarish-ki on my blog Fortified Quirkies U/A and today morning I wrote this poem. Recited this poem @FWA's inaugural Poetry Event in June 2015. Please do not copy, paste or reproduce in any form without my written consent. Copyright@Mridual aka writingdoll