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Wednesday, January 29, 2025

passwords

It was not so long ago that gave you the password to my heart 

Your opened it and played with everything inside it. 

 

You got the permission to roam freely, 

play on the mountains or slide down 

the curves, hide in the flow of my long tresses 

or just feast, biting into my juicy fruits. 

 

There have been many nights when I accommodated you 

in the tight cave, sometimes let your stubborn child pounce and 

pierce me, all for love.  

 

You took away everything good in me and became better. 

Today the smarter you is password protected.  

The labyrinth of your heart is secured and  

I am not allowed, no you don't visit my heart either. 

Our bodies lie next to each other without communicating. 

You sleep and I pretend and I look into the darkness 

 and mourn till the morning. 

 

You don't like the taste of my stale juices so you don't visit me anymore. 

My heart is broken and I can't mend it 

I have lost the password to my own heart. 


Thursday, November 21, 2019

लिख डाल


क़लम में स्याही डाल 
लिख डाल 
काग़ज़ पर उँड़ेल हाल 
लिख डाल। 

अनकही कहानियाँ 
तुमको जो सुनानी हैं 
दिल की परेशनियाँ 
करती जो अंदर बवाल
लिख डाल।

दर्द जो सताते हैं 
टीस ले के आते हैं 
साये जो डराते हैं
सारे डर बाहर निकाल 
लिख डाल।

टूटे हुए सपनों को 
बेगाने हुए अपनों को 
दिल में ना रख 
फेंक दे बाहर निकाल
लिख डाल। 

हो सके तो भूल जा 
हो सके तो माफ़ कर 
पर एक बार काग़ज़ पर 
सभी का हिसाब कर 
फिर फाड़ कर हिसाब को 
साफ़ कर कूड़े में डाल 
लिख डाल।

तब नयी कोई बात कर 
ख़ुद से मुलाक़ात कर 
इतिहास की ना बात कर 
नयी शुरुआत कर 
डोर अपनी ख़ुद सम्भाल
तेरी कहानी है बेमिसाल 
लिख डाल।



Monday, September 17, 2018

बप्पा

होने लगा है धूम धड़ाका 
लो गए गणपति बप्पा 
ढोल नगाड़े धक्कम धक्का 
ट्रैफिक में अटके हैं बप्पा 
यहां के राजा वहां के राजा 
हर एक गली के अपने बप्पा 
विशेष अतिथि का है सम्मान 
और वही मेहमान हैं बप्पा 
कितने रूपों स्वरूपों में 
सर्वव्यापी गणपति बप्पा 
छप्पन भोग लगा लो चाहे 
मोदक खा कर मस्त हैं बप्पा 
मसरूफ लोगों के घर में 
एक आध दिन ठहरते बप्पा 
गौरी मां संग पंचम दिन 
बहुत घरों से जाते बप्पा 
बड़े-बड़े पंडालों में तो 
देखो कैसे सजे हैं बप्पा 
रोशनी की भरमार में 
सारी रात जगे हैं बप्पा 
दस दिन के त्यौहार में
बड़े बड़े इश्तिहार में 
क्या क्या देख रहें हैं बप्पा 
कुछ ने मन से किया भजन 
कुछ फिल्मी धुन में रहे मगन 
सब की मंशा जान रहे हैं 
तर्क समझने वाले बप्पा 
कौन हैं करते उनकी पूजा
और जो करते काम दूजा 
कुछ भी उन से छिपा नहीं है 
सभी जानते गणपति बप्पा 
अनंत चतुर्दशी के दिन 
अनंत में समा जाते बप्पा 
अगले वर्ष लौटने का 
वादा करके जाते बप्पा
मन की आंखों से देखो तो 
अपने भीतर बसते बप्पा 
सच्चे मन से नमन करो तो 
बस पुलकित हो जाते बप्पा 
बप्पा कहीं नहीं जाते हैं
कहीं नहीं जाते हैं बप्पा 

—-मृदुल प्रभा


Tuesday, March 13, 2018

मुंबई शहर में मेहमान आए हैं


मुंबई शहर।  चित्र : मृदुल प्रभा @writingdoll fotografie
मुंबई शहर में मेहमान आए हैं
नाशिक पार से किसान आए हैं

गूंगे बहरों के इस शहर में
कहने अपनी दास्तान आए हैं
मुंबई शहर में मेहमान आए हैं
नाशिक पार से किसान आए हैं

यह दाना दाना बोते हैं
फसलों संग जगते सोते हैं
कम पैसों में फसल बेच के
खून के आंसू रोते हैं
अपनी मेहनत का सही दाम हो
ढूंढने कोई समाधान आए हैं
मुंबई शहर में मेहमान आए है 
नाशिक पार से किसान आए हैं

पांव में इनके छाले हैं
हौसले इन के निराले हैं
तपती सड़क पर मिलो चल कर
छोटे बच्चे घरवाले लेकर
एक सच्चे वादे के लिए
छोड़ कर खेत और खलिहान आए हैं
मुंबई शहर में मेहमान आए हैं
नाशिक पार से किसान आए हैं

शायद कोई अंकुर फूटे
शायद फल जाए मेहनत इनकी
सियासत की बंजर धरती पर
आशा का बीज बोने नादान आए हैं
मुंबई शहर में मेहमान आए हैं
नाशिक पार से किसान आए हैं

धरती में जीवन बोने वाले
मरने को मजबूर हैं
और शहरों में रहने वाले
सच्चाई से दूर हैं
इसलिए लाल झंडे लेकर
हरे खेत को छुट्टी देकर
हक मांगने आए हैं
नहीं लेने किसी का एहसान आए हैं
मुंबई शहर में मेहमान आए हैं
नाशिक पार से किसान आए हैं

--मृदुल प्रभा


Thursday, November 24, 2016

माँ

माँ घर में रहती थी
हमारी ज़रूरतें पूरी करती थी
हर तरह की ज़रूरतें
हम सभी की ज़रूरतें
माँ हमारी सीढ़ी बनी
हम ज़मी से आसमान हो गए
हम ज़िंदगी की तेज़ रफ़्तार में
उसकी धीमी धीमी ज़िंदगी को पीछे छोड़ते चले गए

माँ जो घर की हर चीज़ में समायी रहती थी
अब सिमट गयी है एक कोने में
एक बिस्तर पर वक़्त की चादर लपेटे
इंतज़ार आँखों में समेटे
माँ बहुत कुछ कहना चाहती है पर कहती नहीं

हम स्वार्थी हैं, ये भी माँ जानती है
माँ अब हमारी स्वार्थी हो जाने की ज़रूरत को पूरा करती है।

।। मृदुल प्रभा ।।