उम्र गुज़ारी नहीं है
दरीचों से झाँक कर
ख़ाक छानी भी है
देखी भी है फाँक कर
स्याह काली रातों में
बुने रंगीन सपनों को
तोड़ते भी देखा है
अपने किसी अपनों को
खुशियों की तालाश में
ख़ानाबदोश की तरह
यहाँ वहाँ कई बार
सरफ़रोश की तरह
ज़िन्दगी गुज़ारी है
लम्हा लम्हा तन्हा तन्हा
दरीचों से झाँक कर
ख़ाक छानी भी है
देखी भी है फाँक कर
स्याह काली रातों में
बुने रंगीन सपनों को
तोड़ते भी देखा है
अपने किसी अपनों को
खुशियों की तालाश में
ख़ानाबदोश की तरह
यहाँ वहाँ कई बार
सरफ़रोश की तरह
ज़िन्दगी गुज़ारी है
लम्हा लम्हा तन्हा तन्हा
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