कैसे बदल जाती है हर बात रफ़्ता रफ़्ता
कैसे बदल जाते हैं हालात रफ़्ता रफ़्ता
कब, कहाँ, क्यों, क्या हो जाता है
कैसे उभर आते हैं सवालात रफ़्ता रफ़्ता
शब-ए-ग़म भी लम्बी हुआ करती है अक्सर
फ़िर भी गुज़र जाती है हर रात रफ़्ता रफ़्ता
यह इश्क़ भी ज़ालिम मर्ज़ होता है ऐसा
करती है असर भी हयात रफ़्ता रफ़्ता
यूँ तो मेरी उस से पहचान है पुरानी
पर भूलने लगी हूँ हर बात रफ़्ता रफ़्ता
देने वाला था मुझको जो प्यार बेशुमार
खुशीयाँ चुरा के ले गया वो यार रफ़्ता रफ़्ता
I wrote this one in 1986 ... those were the days.... of Gazals. Recited it on the inaugural Poetry Event of FWA. Please do not copy, paste or reproduce in any form without my written consent. All creative works on my blog are registered. Copyright@Mridual aka writingdoll
कैसे बदल जाते हैं हालात रफ़्ता रफ़्ता
कब, कहाँ, क्यों, क्या हो जाता है
कैसे उभर आते हैं सवालात रफ़्ता रफ़्ता
शब-ए-ग़म भी लम्बी हुआ करती है अक्सर
फ़िर भी गुज़र जाती है हर रात रफ़्ता रफ़्ता
यह इश्क़ भी ज़ालिम मर्ज़ होता है ऐसा
करती है असर भी हयात रफ़्ता रफ़्ता
यूँ तो मेरी उस से पहचान है पुरानी
पर भूलने लगी हूँ हर बात रफ़्ता रफ़्ता
देने वाला था मुझको जो प्यार बेशुमार
खुशीयाँ चुरा के ले गया वो यार रफ़्ता रफ़्ता
I wrote this one in 1986 ... those were the days.... of Gazals. Recited it on the inaugural Poetry Event of FWA. Please do not copy, paste or reproduce in any form without my written consent. All creative works on my blog are registered. Copyright@Mridual aka writingdoll
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