वो जब भी बैठता है ज़ोर ज़ोर से पैर हिलाता है
दो कदम पास आता है तो वापिस लौट जाता है
अज़ीब कशमकश में रहता है वो शख़्स
दूर जा न पाता है न पास बैठ पाता है
और, अजीब इत्तेफ़ाक़ है ये ज़िन्दगी के
हम जिसे याद करते हैं वो हमको भुलाता है
सर्द चाँदनी रातों में नींद कहाँ आती है
उसके घर में वो साया जब नज़र आता है
उसको पोंछू, सुखायुँ मैं निभायुं कैसे
समंदर बेहयाई का वो पीछे छोड़ जाता है
मृदुल
Recited it on the inaugural Poetry Event of FWA. Please do not copy, paste or reproduce in any form without my written consent. All creative works on my blog are registered. Copyright@Mridual aka writingdoll
दो कदम पास आता है तो वापिस लौट जाता है
अज़ीब कशमकश में रहता है वो शख़्स
दूर जा न पाता है न पास बैठ पाता है
और, अजीब इत्तेफ़ाक़ है ये ज़िन्दगी के
हम जिसे याद करते हैं वो हमको भुलाता है
सर्द चाँदनी रातों में नींद कहाँ आती है
उसके घर में वो साया जब नज़र आता है
उसको पोंछू, सुखायुँ मैं निभायुं कैसे
समंदर बेहयाई का वो पीछे छोड़ जाता है
मृदुल
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