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Friday, July 25, 2014

कैसी यह दुनिया बनाई विधाता?

या मर्द बनाता या औरत बनाता
या उनको बनाता या हमको बनाता 
कुछ इस तरह से दुनिया सजाता

यह लाँछन लगाते हैं दर्द पिरोते हैं
खंजर चुभोते हैं ऐसे मर्द होते हैं
कैसे ये समझें न रिश्ता न नाता 
कैसी यह दुनिया बनाई विधाता?

क्यों औरत बनाई डरी सकुचाई
निर्भय हुई भी तो मर्द की परछाई 
क्यों उसका दामन खींचता है कोई 
क्यों वह रातों को डर डर न सोई 
क्यों उसे ही सब झेलना है 
सहना समाज़ की अवहेलना है 
क्यों उसे चुप्पी का पाठ पढ़ाया 
सब दर्द लेकर भी सहना सिखाया 
उसी को बाप भाई का रिश्ता बताया 
क्यों उसी को त्याग की मूर्ति बनाया 
सिर्फ औरत बनाता मर्द नहीं 
सिर्फ़ खुशियाँ सजाता दर्द नहीं 
जो खुशियां लुटाती सिर्फ माँ बनाता 
ममता की प्रतिमाओं से दुनिया सजाता 
कैसी यह दुनिया बनाई विधाता ?

क्यों ऐसे आदमी बना दिए बाप 
जो अपनी ही बेटियों से करने लगे पाप 
वात्सल्य और वासना में फ़र्क़ नज़र नहीं आता 
कैसी यह दुनिया बनाई विधाता?

नन्ही नन्ही परियाँ जो उड़ना नहीं जानती
जिनकी भोली आँखे कपटता नहीं पहचानती 
क्यों तू उनका सरंक्षक बन नहीं पाता ?
कैसी यह दुनिया बनाई विधाता?

क्यों ऐसी दुनिया बनाई विधाता?
या उनको बनाता या हमको बनाता 
कुछ इस तरह से दुनिया सजाता।

 Copyright Mridual aka writingdoll

Yes, I am a feminist if that is what my strong views about atrocities on women and girls make me. My heart goes out every time I see an addition to my #BrokenDollHouse.  I am angry with my God for creating a world such as this. How could HE create such barbaric, callous creatures to be called as human beings? This is my dialogue with HIM on this Ekadashi, 22nd July with tearful eyes.

Recited it at #FWA Kavi Goshthi on 20th Feb 2015

Read poignant poetry.  Every poem is based on a real incident or narrative by real people.

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