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Wednesday, July 2, 2014

मैंने कहा बादल से

मैंने कहा बादल से:
"अरे नाराज़ हो क्या? 
पल्स पोलियो की बूँदों की तरह 
दो दो बूँद टपका कर चल देते हो"-
कल यही शिकायत की थी मैंने।
"बरसा दो बारिश को बारिश की तरह"-
बस यही गुज़ारिश की थी मैंने।
और तुम बरस पड़े 
जोर जोर से 
घर में पानी घुस आया 
बालकॉनी की ओर से,
पर इसकी शिकायत तुमसे नहीं है।
तुम तो बरसो
जम के बरसो
झम झम बरसो

मन मयूर सा नाच उठा है 
पेड़ो के पत्ते निखर से गए हैं 
कबूतर छज्जों से सट कर दुबक गए हैं 
सड़क धुल गयी है 
लो, पहली छतरी खुल गयी है
धीरे धीरे कई रंग बिरंगी छतरियाँ 
काली बेरंग सड़क पर 
चलने फिरने लगी हैं।
वह खूबसूरत लबादों में,
जिन्हें रेन कोट कहते हैं 
ये स्कूली बच्चे
कितने प्यारे लगते हैं, 
पर रेन कोटों में इनकी पीठ पर 
ऊँट के कूबड़ की तरह 
उभरा हुआ बस्ता 
और पानी से भरे 
गड्ढ़ों वाला रस्ता,
बस यही खलता है,
पर इसकी शिकायत तुमसे नहीं है।
तुम तो बरसो
जम के बरसो
झम झम बरसो

सुनो, अब किसी रोज़ मैं 
छतरी घर पे भूल आऊँगी 
तुम्हारी ताज़ा तरीन बारिशों में 
पूरा भीग जाऊँगी,
अरे वैसे तो लोग 
बारिश को तरसते हैं 
पर बरसने लगे
तो छुपने को भगते हैं,
ना, यह भी शिक़ायत तुमसे नहीं है।
तुम तो बरसो
जम के बरसो
झम झम बरसो


और तुम्हारे धुंधले ठहरे पानी में भी
रंगीन छवियाँ बहुत भाती हैं
वैसे तो तुम्हारी काली घटाएँ
सब रूमानी कर जाती हैं 
पर तुम्हारी बारिश की चंद बूँदें
कम्बखत यादें बहुत सी ले आती हैं,
अरे इसकी भी शिकायत तुमसे नहीं है। 
तुम तो बरसो
जम के बरसो
झम झम बरसो


Yesterday I wrote a blog post guzarish-baarish-ki on my blog Fortified Quirkies U/A and today morning I wrote this poem. Recited this poem @FWA's inaugural Poetry Event in June 2015. Please do not copy, paste or reproduce in any form without my written consent. Copyright@Mridual aka writingdoll

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